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व्यावसायिक हिंदी लेखन - I
First Edition, October 2025 : Size : A5
ISBN-13 : 978-93-48703-21-7 : Pages : xii+134
Code No. : VSRDAPTNT-579 : Price : Rs. 160.00
PRINTED IN SINGLE COLOUR : Export Price : US $ 16.00
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Dr. Pavan Mishra
डॉ. पवन मिश्रा एक समग्र दृष्टि वाले शोधकर्ता-लेखक हैं जिनका लेखन और शिक्षण हिंदी पत्रकारिताए जनसंचार एवं व्यावसायिक लेखन के परस्पर जुड़े क्षेत्रों पर केन्द्रित है। आपका जन्म 1990 में उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर ज़िले के छोटे से गाँव हलिया में हुआ। आपने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मिर्ज़ापुर में प्राप्त की। जिसके बाद आपने उच्च और बहुआयामी शैक्षणिक योग्यता के लिए प्रयागराज (इलाहाबाद) का रुख किया। उच्च शिक्षा के दौरान, आप प्रयागराज के छात्र-राजनीति में भी सक्रिय रहे और एक पदाधिकारी के रूप में आपने छात्रों के बीच संवाद और नेतृत्व कौशल को भी मजबूत किया। यह ग्रामीण पृष्ठभूमि और शहरी ज्ञान का मिश्रण ही आपकी लेखन शैली को व्यावहारिक और व्यापक बनाता है। वर्तमान में आप वाराणसी के जगतपुर पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में शिक्षण कार्य कर रहे हैं। आपने अपनी प्राथमिक विशेषज्ञता पत्रकारिता एवं जनसंचार के क्षेत्र में स्थापित की है। शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय रहते हुए उन्होंने अनेक शैक्षणिक तथा व्यावहारिक अनुभव अर्जित किए हैं और समय के साथ अपने ज्ञान को तकनीकी दक्षता तथा पारंपरिक सैद्धांतिक समझ के संग समृद्ध किया है। विविध विषयों में हासिल की गई स्नातक व स्नातकोत्तर योग्यताओं - जिसमें कम्प्यूटर एप्लीकेशन, विधि, शिक्षा, जनसंचार और योग-शास्त्र शामिल हैं - ने उन्हें बहुआयामी सोच का अधिकारी बनाया है। साथ ही डिप्लोमा और प्रमाणपत्र पाठ्यक्रमों के माध्यम से वे निरन्तर अपने कौशलों को अपडेट करते रहे हैं। शोध के क्षेत्र में डॉ मिश्रा का रुझान हिंदी प्रेस-परंपरा और आधुनिक मीडिया के मेल-जोल। डिजिटल मीडिया के सामाजिक-सांस्कृतिक आयाम तथा पत्रकारिता के नीतिगत व नैतिक प्रश्नों की ओर रहा है। उनके प्रकाशित शोध-लेखों में हिंदी डिजिटल मीडिया और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद। हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में नारीवादी दृष्टिकोण। हिंदी पत्रकारिता का सांस्कृतिक संरक्षणए काशी की पत्रकारिता का ऐतिहासिक अध्ययन तथा आर्थिक राष्ट्रवाद में हिंदी प्रेस की भूमिका जैसे विषय प्रमुख हैं। उनकी शैक्षिक पद्धति अभ्यास-आधारित है – विचार, आलोचना और व्यवहारिक उपयोग को समान महत्व देते हुए वे अपने शिक्षण में संवाद, परियोजना कार्य और मल्टीमीडिया संसाधनों का उपयोग करते हैं। डॉ. मिश्रा का मानना है कि साहित्य-पत्रकारिता और व्यावसायिक लेखन का असली अर्थ तब उभरकर आता है जब वह समाज के जन-भागीदारों के लिए उपयोगी, जागरूक और संवेदनशील बनता है।
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